खबरें फिल्म रिव्यु बॉलीवुड मनोरंजन सुशांत सिंह राजपूत की आखिरी फिल्म ‘दिल बेचारा’ : उनको हृदय से नमन By admin Posted on July 25, 2020 22 second read 0 0 255 Share on Facebook Share on Twitter Share on Google+ Share on Reddit Share on Pinterest Share on Linkedin Share on Tumblr के. कुमार # फिल्म : ‘दिल बेचारा’ कलाकार : सुशांत सिंह राजपूत, संजना सांघी, स्वास्तिका मुखर्जी, साश्वता चटर्जी। निर्देशक : मुकेश छाबड़ा। अवधि : 51 मिनट स्टार : 3.5 हमेशा जिंदगी को जिंदादिली से जीने का संदेश देते हुए सुशांत सिंह राजपूत इस बार भी अपनी आखिरी फिल्म ‘दिल बेचारा’ में भी यही संदेश देते हुए खुद दुनिया का अलविदा कह गए। जी हां अंग्रेजी उपन्यास ‘द फाॅल्ट इन आॅवर स्टार्स’ की कहानी पर आधारित यह उनकी आखिरी फिल्म। सुशांत का ये जहां कभी नहीं भूल पाएगा। इसलिए उनके सभी चाहने वाले, जिन्हें सुशांत की फिल्म का रिलीज होने का इतंजार था, तो डिजनी हाॅटस्टार पर आप इस फिल्म को देखकर उनको श्रद्धांजलि अर्पित जरूर करें। वैसे तो यह फिल्म बड़े पर्दे पर रिलीज होनी थी, लेकिन क्या फर्क पड़ता है, जब सुशांत ही नहीं हैं, तो बड़े पर्दे पर रिलीज हो या डिजिटल प्लेटफाॅर्म पर। वे किसी को नहीं कहेंगें कि आपने ऐसा क्यों किया? ‘दिल बेचारा’ का कहानी शुरू होती है। किजी बसु (संजना सांघी) से, जो फिल्म की हिरोईन हैं, और अपनी मां (स्वास्तिका मुखर्जी) और पिता (साश्वता चटर्जी) के साथ रहती है और किजी को थायरॉयड कैंसर है और वह हर समय अपने ऑक्सीजन सिलेंडर लटकार चलती है, चाहें कहीं भी उसको जाना है और उसने उस सिलेंडर का नाम पुष्पेंदर रखा हुआ है। वहीं अपना इलाज कराते हुए किजी की मुलाकात इमैनुअल राजकुमार जूनियर यानी मैनी (सुशांत सिंह राजपूत) से होती है जो खुद एक कैंसर ऑस्ट्रियोसर्कोमा से लड़ रहा ह,ै जिसकी वजह से उसकी एक टांग भी चली गई है। वहीं किजी जीवन में अपने का अकेला समझती है, उसे किसी से दोस्ती करने में भी डर लगता है, यह सोच कि कहीं मौत जिंदगी के किस मोड़ पर मिल जाए। लेकिन उसकी जिंदगी में मैनी के आने से खुशियां भर जाती हैं। जिंदगी में किजी की एक चाह है कि वह पेरिस में रह रहे अपने पसंदीदा गायक अभिमन्यु वीर सिंह से मिले, क्योंकि उसका लिखा आखिरी गाना अधूरा है, इसीलिए लिए वह उससे मिलना चाहती है और अपनी इसी इच्छा का वह मैनी से बताती है, मैनी उसकी इस इच्छा को सम्मान करते हुए पूरा करने का वादा करता है, लेकिन पैरिस जाने से पहले किजी की तबीयत बिगड़ जाती है और कुछ दिन तक मैनी से नहीं मिलती, क्योंकि वह डरती है कि मैं कहीं मर ना जाउं, वह किसी भी रूप में मैनी का दुख नहीं पहुंचाना चाहती, क्योंकि उसे मैनी से प्यार हो गया है और उसे लगता है कि वह मैनी पर बोझ न बन जाए, लेकिन मैनी उसकी भावनाओं का समझता है और उसे अकेला नहीं छोड़ना चाहता। अब आगे वे दोनों पेरिस जाते हैं, और उनकी यह इच्छा पूरी होती है या नहीं, इसके लिए आप इस फिल्म को हाॅटस्टार पर देख सकते हैं। असल में सुशांत अपना हर किरदार बहुत ही गहराई और जिंदादिली से करते थे, इसलिए उनको देखको देखकर हमेशा सकारात्मक भाव महसूस होता था। लेकिन दुखःद है कि वे अब कभी अपने किसी किरदार में नहीं दिखेंगें, लेकिन हम सब उनका हमेशा अपनी यादों और फिल्मों में याद रखेंगें। इस फिल्म में भी सुशांत अपने अभिनय में खूब जंचे हैं, क्योंकि उनके किरदार और उनकी सहज-मद्दम हंसी के भाव सबको कायल कर देती है। वहीं नायिका के रूप में संजना सांघी भी अपने किरदार में परफेक्ट अभिनय करती नजर आ रही हैं। बांगला फिल्म के अभिनेता पिता के किरदार में साश्वता चटर्जी और मां के किरदार में स्वास्तिका मुखर्जी दोनों ने भी माता-पिता का अभिनय वास्तविकता से निभाया है। दोनों के जीवन में कैंसर से जूझती अपनी बेटी के दर्द को देखा जा सकता है। फिल्म आपको शुरू में देखने पर आपको बोरिंग लग सकती है, लेकिन यदि आप पारंपारिक मनोरंजन की अपनी छवि को थोड़ा साईड रखकर इस फिल्म को देखेंगें, तो निश्चित ही यह आपके दिल को छुएगी। फिल्म के दृश्यों में अपको जमशेदपुर के दृश्य मन को जरूर भाएंगें। फिल्म के गाने अच्छे हैं, क्योंकि इसका संगीत ए आर रहमान ने दिया है। फिल्म के डाॅयरेक्टर मुकेश छावड़ा ने फिल्म की कहानी को किरदारों से बांधने का अच्छा प्रयास किया है।