ब्लॉग /आलेख पत्रकारो की बदहाली व्यथा की कारुणिक कथा…. By admin Posted on November 16, 2020 22 second read 0 0 175 Share on Facebook Share on Twitter Share on Google+ Share on Reddit Share on Pinterest Share on Linkedin Share on Tumblr प्रस्तुति : विनोद तकिया वाला (स्वतंत्र पत्रकार) ताऊ – सुनो सुनो देश वासियो सुनो । समाज सेवी सुनो . किसान मजदुर सुनो देश के कर्णधारो सुनो श् कार्यपालिका श् विधायिका व न्याय पालिका के मेमवरानो सुनो । आज पुनीत पावन – दिवश है क्योकि आज राष्ट्रीय प्रेस दिवस की वर्षगाठ है इस शुभ घडी मे देश के समस्त पत्रकार भाइयों कोअनंतमय शुभकामनाएं! खबरी लाल – ताऊ आप व समस्त देश वासियो को त्योहार के मौसम मे हमारी व प्रजातंत्र के प्रहरी व प्राण पत्रकार बन्धुओ की तरफ हार्दिक शुभ मंगल कामनाएँ। ताऊ – हॉ खबरी लाल पत्रकार तो प्रजातंत्र के प्रहरी होते है। इनका सम्मान तो प्रत्येक देश प्रेमी करना चाहिए । खबरी लाल – ताऊ आप ने सही बात कही । इस वर्ष कोरोना संक्रमण का दौर चल रहा है। हर क्षेत्र में बड़े- बदलाव हुए हैं, कोरोना काल के दंश से कई हमारे पत्रकार मित्र काल के गाल मे समा गये । पत्रकारो की बदहाली व्यथा की कारुणिक कथा किसे कहुँ। ताऊ – खबरी लाल हमे दुःख है । हम प्रजातंत्र केप्राण प्रहरी को भाव भीनी श्रद्धाजंली अर्पित करते है।खबरी लाल – भले ही हम आज प्रजातंत्र के चैथे स्तम्भ के रूप मे अपनी पहचान बना – ली है लेकिन कॉरपेट जगत के काले सम्राज्य व सरकार के वेरुखी का शिकार है।खबरी लाल – भारतीय पत्रकारिता मे बदलाव के कई दौर गुज रहा है ऐसे मे पब्लिक रिलेक्स अथार्त पी आर कम्पनी का भी बहुत बडा योगदान है जो कि प्रजातंत्र व देश हित के लिए हानिकारक सिद्ध हो रहा है। पी आर आज पत्रकारिता जगत व पत्रकार के लिए ना ईलाज केंसर बन गया है।आज स्थिति तो यह है कि झूठे-झूठे बड़े खबरें प्रेस विज्ञप्ति के नाम से भेजे जाते हैं। सुचना के श्रोत व समाचारो की संपुष्टि तक नही होती है। दिल्ली व एन सी आर जैसे चकाचैंध शहर में पत्रकारिता का मिजाज कुछ अलग ढंग का है। खबरों के लिए अखबारों में इतनी जगह दे दी गई है कि पत्रकार बेचारा बन कर रह जाता है। वह निर्णय, अनिर्णय की स्थिति में वैसे खबरों को स्थान देने को बाध्य हो जाता है, जो हकीकत में सच नहीं होता। कई बार उनकी खबरें स्वतः बनाकर लगाते हैं। इससे ऐसे लोग न तो पत्रकारों को तरजीह देते हैं, न पत्रकारिता को ही। वे उनकी विवशता, मजबरी का खूब फायदा उठाते हैं। एक तरह से वे सुर्खियों में बने रहकर खूब शोहरत बटोरते हैं। इसी तरह दर्जनों नेता, समाजसेवक फटे झोली लेकर आए और आज बड़े मालदार बन गए हैं। ऐसे लोग पत्रकारों को देखते ही नाक-भौं सिकोड़ लेते हैं और दलाल तक कहने में गुरेज नहीं करते। वे समझते हैं कि कोई भीख मांगने वाला आ गया है? आज राष्ट्रीय पत्रकारिता दिवस है तो हमें भी बदलाव को स्वीकार करना होगा। मुफ्त की पत्रकारिता और बेईमानों, धूर्तबाजों की फर्जी खबरें बिना कोई सूचना के प्रकाशित करने पर विराम लगाना होगा। अगर पत्रकार भाई बदलाव को स्वीकार नहीं करते हैं, तो अपनी दशा-दिशा के वे खुद जिम्मेदार हैं, कोई दूसरा नहीं ! कहते है इतिहास आप तभी पढ़ पाते हैं जब इतिहासकारो ने इतिहास लिखा .. वैसे ही लोकतंत्र और राजनीति में क्या कुछ हो रहा वो आपको पत्रकारिता के माध्यम से पता चलता है। वैसे भी पत्रकारिता को लोकतंत्र को चैथा स्तम्भ कहा जाता है। आपको बता दे प्रत्येक वर्ष ’16 नवम्बर’ को राष्ट्रीय प्रैस दिवस मनाया जाता है।यह दिन भारत में एक स्वतंत्र और जिम्मेदार प्रेस की मौजूदगी का प्रतीक है। विश्व में आज लगभग 50 देशों में प्रेस परिषद है।भारत में प्रेस को ‘मोरल वाचडॉग’ कहा जाता है।राष्ट्रीय प्रेस दिवस, प्रेस की स्वतंत्रता एवं जिम्मेदारियों की ओर हमारा ध्यान आकृष्ट करता है। आपको बता दें, प्रथम प्रेस आयोग ने भारत में प्रेस की स्वतंत्रता की रक्षा के लिए एक प्रेस परिषद की कल्पना की थी। परिणाम स्वरूप 4 जुलाई, 1966 को भारत में प्रेस परिषद की स्थापना की गई, जिसने 16 नवम्बर,1966 से अपना विधिवत कार्य शुरू किया। तब से लेकर आज तक प्रतिवर्ष 16 नवम्बर को ‘राष्ट्रीय प्रेस दिवस’ के रूप में मनाया जाता है. राष्ट्रीय प्रेस दिवस मनाने का मुख्य उद्देश्य देश में आम लोगों को प्रेस के बारे में जागरूक करना और उनको प्रेस के नजदीक लाना है। पत्रकारिता का क्षेत्र आज व्यापक हो गया है। पत्रकारिता जन-जन तक सूचना पहुंचाने का मुख्य साधन बन चुका है। ताऊ – खबरी लाल यह तो बहुत ही सोचनीय व दयनीय स्थिति है। खबरी लाल – हॉ ताऊ एक जमाना था श् जो किस्से कहानी मे के पन्ने के सिमट कर रह गयी है। पत्रकार व पत्रकारिता पतन का दौर से गुजर रहा है। किसे सुनाओ मै दिल की व्यथा ताऊ । ताऊ – खबरी लाल हॉ एक जमाने में नारद मुनि थे जो नारायण नारायण कह कर तीनो लोको का स्वछन विचरन किया करते थे एक जगह से दुसरी जगह र्निडर व र्निमिक सुचना देते थे । पत्रकार भी उनकी की पूर्वज है। ख वरी लाल – छोडे इन बातो को ताऊ । मुझे अब आप से विदा लेने का वक्त हो गया है। अलविदा । ना काहूँ से दोस्ती , ना काहुँ से बैर खबरी लाल तो मांगे , सबकी खैर ।