खबरें धर्म / आस्था श्रद्धा ,समपर्ण व अटुट आस्था का महापर्व छठ-खबरीलाल By admin Posted on November 20, 2020 24 second read 0 0 192 Share on Facebook Share on Twitter Share on Google+ Share on Reddit Share on Pinterest Share on Linkedin Share on Tumblr खबरीलाल – दुनिया कहती है जिसका ‘उदय’ होता है उसका ‘अस्त’ होना तय है लेकिन “छठ पर्व” सिखाती है़ जो ‘अस्त’ होता है उसका ‘उदय’ तय है महापर्व छठ पूजा यह संदेश हमे देती है। ताऊ – सुनो – सुनो सभी ग्रामीण शहरी व देश वासियो ‘सुनो खबरी लाल अपने चौपाल मे ताजा तरी न खबरो को लेकर आ गये है । आओ खबरी लाल आओ । खबरी लाल – छठी मैया देहु मोहे आशीष । जुग -जुग जीये मोहे ललवान । हे छठ मैया ताऊ – खबरी लाल तुम कौन सी गीत गुन . गुना रहे हो आज। खबरी लाल – ताऊ जी आज पूवांचलीओ का श्रद्धा , समपर्ण व अटूट आस्था का महापर्व है छठ ताऊ – हाँ खबरी लाल हमारा देश विभिन्न संस्कृति सभ्यता व पर्व त्योहारो का देश है भारत | यही हमारी पहचान है । हमारी अखण्डता ही हमारी शक्ति है। खबरी लाल – हॉ ताऊ छठ पर्व की कहानी है भिन्न भिन्न किदवन्तीयाँ से जुड़ी है। ताऊ – हमे सभी को छठ पर्व की महिमा का विस्तृत रूप से बताओ खबरी लाल । हम सभी को भी छठ मैया की कृपा व आर्शवाद मिल सके । तुम्हारी अति कृपा होगी । ताऊ – लेकिन खबरी लाल इस बार तो कोरोना के कारण छठ पूजा सार्वजिनक स्थान पर नही हो रही है।खबरी लाल – हॉ ताऊ आप ने सही बात कही । लेकिन छठ मैया की कृपा से जल्द ही संकट के बादल समाप्त हो जायेगा।सुनो ताऊ ‘ छठ पर्व का आरम्भ नाय खाय से शुरू होती है दुसरे दिन रात मे चावल दुध गुड से वनी खीर खरना होती है । तीसरे दिन शाम मे अस्ता गार्मी सूर्य को प्रथम अर्घ दिया जाता है। इसका मनोरम दृश्य जब विश्व की सबसे प्राचीन सभ्यता की स्त्रियां अपने सम्पूर्ण वैभव के साथ सज-धज कर अपने आँचल में फल फकवान ले लदी बाँस से बनी डाली – सुप मे सजा कर निकलती हैं अपने अराध्य सुर्य देव को अर्ध देने निकल पड़ती है । ऐसा मनोरम दृश्य अविस्मरणीय होती है।जैसे संस्कृति स्वयं समय को चुनौती देती हुई कह रही हो, “देखो! तुम्हारे असंख्य झंझावातों को सहन करने के बाद भी हमारा वैभव कम नहीं हुआ है, हम सनातन हैं, हम भारत हैं। हम तबसे हैं जबसे तुम हो, और जबतक तुम रहोगे तबतक हम भी रहेंगे।” जब घुटने भर जल में खड़ी व्रती की सुप में बालक सूर्य की किरणें उतरती हैं तो लगता है जैसे स्वयं सूर्य बालक बन कर उसकी गोद में खेलने उतरे हैं। स्त्री का सबसे भव्य, सबसे वैभवशाली स्वरूप वही है। इस धरा को “भारत माता” कहने वाले बुजुर्ग के मन में स्त्री का यही स्वरूप रहा होगा। कभी ध्यान से देखिएगा छठ के दिन जल में खड़े हो कर सूर्य को अर्घ दे रही किसी स्त्री को, आपके मन में मोह नहीं श्रद्धा उपजेगी ।छठ वह प्राचीन पर्व है जिसमें राजा और रंक नदी के एक घाट पर माथा टेकते हैं, एक देवता को अर्ध देते हैं, और एक बराबर आशीर्वाद पाते हैं। धन और पद का लोभ मनुष्य को मनुष्य से दूर करता है, पर धर्म उन्हें साथ लाता है।अपने धर्म के साथ होने का सबसे बड़ा लाभ यह होता है कि आप अपने समस्त पुरुखों के आशीर्वाद की छाया में होते हैं। छठ के दिन नाक से माथे तक सिंदूर लगा कर घाट पर बैठी स्त्री अपनी हजारों पीढ़ी की अजियासास ननियासास की छाया में होती है, बल्कि वह उन्ही का स्वरूप होती है। उसके हरी बॉस से बनी डाला व सुप में केवल फल फकवान नहीं होते, समूची प्रकृति होती है। वह एक सामान्य स्त्री सी नहीं, अन्नपूर्णा सी दिखाई देती है। ध्यान से देखिये! आपको उनमें कौशल्या दिखेंगी, उनमें मैत्रेयी दिखेगी, उनमें सीता दिखेगी, उनमें अनुसुइया दिखेगी, सावित्री दिखेगी… उनमें पद्मावती दिखेगी, उनमें लक्ष्मीबाई दिखेगी, उनमें भारत माता दिखेगी। इसमें कोई संदेह नहीं कि उनके आँचल में बंध कर ही यह सभ्यता अगले हजारों वर्षों का सफर तय कर लेगी।छठ डूबते सूर्य की आराधना का पर्व है। डूबता सूर्य इतिहास होता है, और कोई भी सभ्यता तभी दीर्घजीवी होती है जब वह अपने इतिहास को पूजे। अपने इतिहास के समस्त योद्धाओं को पूजे और इतिहास में छठ उगते सूर्य की आराधना का पर्व है। उगता सूर्य भविष्य होता है, और किसी भी सभ्यता के यस्शवी होने के लिए आवश्यक है कि वह अपने भविष्य को पूजा जैसी श्रद्धा और निष्ठा से सँवारे… हमारी आज की पीढ़ी यही करने में चूक रही है, पर उसे यह करना ही होगा… यही छठ व्रत का मूल भाव है। मेरे देश की माताओं! परसों जब आदित्य आपकी सुप में उतरें, तो उनसे कहिएगा कि इस देश, इस संस्कृति पर अपनी कृपा बनाये रखें, ताकि हजारों वर्ष बाद भी हमारी पुत्रवधुएँ यूँ ही सज-धज कर गंगा के जल में खड़ी हों और कहें- “उगs हो सुरुज देव, भइले अरघ के बेर…” संतान को दीर्घायु प्रदान करती हैं , ये ब्रह्मा जी की मानसपुत्री हैं और षडानन कार्तिकेय की प्राणप्रिया है। जन्म के छठे दिन जो छठी मनाई जाती हैं वो इन्हीं षष्ठी देवी की पूजा की जाती है । प्रतिमास शुक्लपक्ष षष्ठी को मङ्गलदायिनी की पूजा होती है।स्वेत चम्पक फूल के समान उनकी आभा है, रत्न के गहनों से भूषित हैं। हे नारद! यह सभी का वाञ्छित देने वाला स्तोत्र तथा वेदों में गूढ़ है। देवी, महादेवी, सिद्धि, शान्ति को बारम्बार नमस्कार ।प्रकृति देवी के एक प्रधान अंश को ‘देवसेना’ कहते हैं।इन्हें लोग भगवती ‘षष्ठी’ के नाम से कहते है। विष्णुभक्त तथा कार्तिकेय जी की पत्नी हैं। ये साध्वी भगवती प्रकृति का छठा अंश है। खबरी लाल – ताऊ छठ पर्व मे अस्तगामी सूर्य को अर्ध दिया जाता है । जो कि एक संदेश देता है हमे निराश नही होना चाहिए । पुनः कल पुरब दिशा मे उदित होने वाला भुवन भास्कार अपनी सत्प अश्व पर सवार होकर स्वर्णिम किरणे के साथ नई स्पूर्णा नई उमंग . नई उत्साह के साथ आते है जिन्हे अर्ध दे कर परब का समापन होता है। ताऊ – खबरी लाल आज समस्त विश्व कोरोना जैसी संकट से जीवन जीविका के जंग से जुझ रहा है। तुम हमारे व भारत के वासियो के कल्याण के लिए भी प्रार्थना करना ताकि कोरोना के काले बादल संकट छट जाय । खबरीलाल – हाँ ताऊ मै छठ मैया से प्रार्थना व भगवान सूर्य से अर्ध अर्पण करेगें । खबरी लाल – अच्छा ताऊ अब हम विदा लेते है । ना काह से दोस्ती ना काहु से बैर.खबरी लाल मांगे तो सबकी खैर । समस्त देश वासियो को खबरी लाल के ओर से श्रद्धा समपर्ण वआस्था का महापर्व छठ_पूजा की आप सभी के जीवन मे सुख , शांति व सम्बद्धि लाए ।