खबरें राष्ट्रीय / अंतर्राष्ट्रीय स्वास्थ / सौंदर्य लिवर ट्रांसप्लान्ट में प्रगति के साथ लिवर रोगियों को बड़ी राहत By admin Posted on January 27, 2021 21 second read 0 0 89 Share on Facebook Share on Twitter Share on Google+ Share on Reddit Share on Pinterest Share on Linkedin Share on Tumblr लिवर फेलियर के रोगियों के लिए एडवांस लिवर ट्रांसप्लान्ट एक वरदान जयपुर : भारत में लिवर ट्रांसप्लान्ट की प्रक्रिया में प्रगति के साथ, लिवर फेलियर के रोगियों में एक बड़ी राहत देखने को मिली है। लिवर ट्रांसप्लान्ट के बाद मरीजों को एक नया, लंबा और बेहतर जीवन प्राप्त होता है। लिवर का काम प्रोटीन, एंजाइम और अन्य पदार्थों का उत्पादन करके पाचन में मदद करना है। लेकिन जीवनशैली की खराब आदतों जैसे कि शराब का अत्यधिक सेवन, बीमारियों जैसे कि हेपेटाइटिस बी या सी, फैटी लिवर, एक्यूट लिवर फेलियर, कार्सिनोमा या लिवर के कैंसर के कारण लिवर धीरे-धीरे पूरी तरह खराब होने लगता है। ऐसे में लिवर ट्रांसप्लान्ट की जरूरत पड़ती है। नई दिल्ली में साकेत स्थित मैक्स सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल के सेंटर फॉर लिवर एंड बायलरी साइंसेस के चेयरमैन, डॉक्टर सुभाष गुप्ता ने बताया कि, “लिवर ट्रांसप्लान्ट की जरूरत केवल उन मरीजों को पड़ती है, जिनका लिवर पूरी तरह से खराब हो चुका है और जो नए लिवर के बिना जिंदा नहीं रह सकते हैं। सीटी स्कैन और एमआरआई लिवर स्कैन जैसी इमेजिंग तकनीकों में विकास की मदद से आज छोटे से छोटा ट्यूमर का पता आसानी से लगाया जा सकता है। लिवर ट्रांसप्लान्ट में प्रगति के साथ, आज भारत में मृतक डोनर के अंगों को मशीन में संरक्षित किया जा सकता है। इसमें पंप के जरिए खून का बहाव जारी रहता है जिससे लिवर सामान्य स्थिति में रहकर लंबे समय तक पित्त का उत्पादन कर पाता है।” भारत में यह तकनीक एक लोकप्रिय प्रक्रिया बन गई है। एडवांस लिवर डोनर सर्जरी में पुरानी लिवर डोनर सर्जरी की तुलना में कई फायदें हैं, जैसे कि कम दर्द, तेज रिकवरी और न के बराबर निशान आदि। लिवर ट्रांसप्लान्ट की मदद से हजारों-लाखों मरीजों को एक बेहतर जीवन प्राप्त हुआ है। डॉक्टर सुभाष ने अधिक जानकारी देते हुए कहा कि, “लाइव डोनर लिवर ट्रांसप्लान्ट की प्रक्रिया में लिवर के केवल खराब भाग को प्रत्यारोपित किया जाता है। सर्जरी के बाद डोनर का शेष लिवर दो महीनों के अंदर फिर से बढ़ने लगता है और पुन: सामान्य लिवर का आकार ले लेता है। इसी प्रकार रिसीवर का प्रत्यारोपित लिवर भी अपने सामान्य आकार में बढ़कर, फिर से सही ढ़ंग से काम करने लगता है। जीवित या मृतक डोनर वह है जो अपना लिवर मरीज को दान करता है। परिवार का कोई सदस्य जिसकी उम्र 18-50 वर्ष हो, स्वस्थ हो और जिसमें कोई मेडिकल समस्या न हो तो वह लाइव डोनर बनकर लिवर दान कर सकता है। भारत में लिवर ट्रांसप्लान्ट की प्रक्रिया समय के साथ अधिक सुरक्षित व सफल बनती जा रही है। इसकी मुख्य वजह बढ़ती जागरुकता है, जहां लोग स्वेच्छा से जीवित या मृतक डोनर का लिवर जरूरतमंद रोगियों को दान कर रहे हैं।” हालांकि, लिवर ट्रांसप्लान्ट के बाद मरीज को हमेशा एंटी रिजेक्शन मेडिकेशन लेना पड़ता है, जिससे कि उसका शरीर नए लिवर को अस्वीकार न कर दे। जैसे-जैसे वक्त बीतता जाता है, दवाइयों की डोज़ कम होती जाती है। इस के साथ उन्हें जीवनभर डॉक्टर के संपर्क में रहने की आवश्यकता होती है।