इतिहास /पुरातत्व कला/साहित्य / संस्कृति खबरें 23 मार्च शहीदी दिवस पर विशेष : फांसी से पहले उनके हाथों में लेनिन की जीवनी थी और वे ‘इंकलाब जिंदाबाद’ का उद्द्घोष कर रहे थे By admin Posted on 3 weeks ago 22 second read 0 0 32 Share on Facebook Share on Twitter Share on Google+ Share on Reddit Share on Pinterest Share on Linkedin Share on Tumblr सुधीर विद्यार्थी भगतसिंह से पहले भारतीय क्रांतिकारी आंदोलन धर्म और आस्था की भूलभुलैयों में भटक रहा था। वहां देश आराध्य था, जिसकी उपासना या पूजा की जा सकती है। भगतसिंह के ठीक पहले काकोरी के क्रांतिकारी फाँसी चढ़े तो उनके हाथों में गीता या कुरान की पवित्र पुस्तकें थीं। वे ‘ओम’ या ‘लब्बैक’ कहते हुए फाँसी के फंदों में झूल गए, लेकिन 1931 तक आते-आते भगतसिंह के फाँसी पर जाते समय उनके हाथ में लेनिन की जीवनी थी और वे ‘इन्कलाब जिंदाबाद’ का उद्घोष कर रहे थे। भगतसिंह के हाथ में फाँसी से पहले किसी क्रांतिकारी पुस्तक का होना क्रांतिकारियों की वैज्ञानिक समझ और उनकी प्रगतिशील चेतना की ओर संकेत करता है। कहा जाता है कि जब उनके लिए फाँसी घर की ओर चलने का बुलावा आया, तो वे उस पुस्तक का कोई पन्ना पढ़ रहे थे। उन्होंने उस पुस्तक का पढ़े जानेवाला पृष्ठ वहीं मोड़ा और शहादत का जाम पीने के लिए उठकर चल दिए। वे शहीद हो गए, लेकिन क्रांति की उस पुस्तक का वह पृष्ठ आज भी ठीक उसी जगह मुड़ा हुआ है, जहां भगतसिंह उसे छोड़ गए थे। क्रांति अब भी हमारे एजेंडे पर है और हमें भगतसिंह द्वारा मोड़े गए पन्ने को सीधे करके क्रांति की उस पुस्तक को उसी जगह से पढ़ना शुरू करना है।