- कौशल कुमार (संपादक, शाइन दिल्ली)
नोएडा इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी के प्रो. वाइस चांसलर और देश के जाने-माने अकादमिक प्रशासक प्रो. प्रसेनजीत कुमार नई शिक्षा नीति के लक्ष्यों को लेकर शुरुआती दौर से ही बेहद सजग रहे हैं और वो देश में आयोजित अलग-अलग अंतरराष्ट्रीय व राष्ट्रीय सम्मेलनों में उन योजनाओं के क्रियान्वयन को लेकर अपनी राय और विश्लेषण प्रमुखता से प्रस्तुत करते रहे हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय शिक्षा मंत्री श्री धर्मेंद्र प्रधान नई शिक्षा नीति के क्रियान्वयन को लेकर पूरी तरह वचनवद्ध हैं। देश की तमाम शिक्षण संस्थाएं नई शिक्षा नीति के उद्देश्यों के अनुरूप कार्य करने की कोशिश कर रही हैं। इसमें कोई शक नहीं कि नई शिक्षा नीति में शिक्षण प्रक्रिया से जुड़े कई क्रांतिकारी बदलावों की बात कही गई है। लेकिन योजनाएं बनाने और उन योजनाओं को साकार करने में एक बड़ा फासला होता है, ऐसे में देखना यह है कि शिक्षण संस्थान खासकर देश की बड़ी-बड़ी यूनिवर्सिटी इस चुनौती से कैसे निपटती है। निश्चित तौर पर उच्चतर शिक्षण संस्थान खासकर देश की तमाम यूनिवर्सिटीज के लिए यह एक महती जिम्मेदारी का कार्य है। यूजीसी नई शिक्षा नीति के अनुपालन पर बारीक निगाह रखते हुए समय-समय पर आवश्यक निर्देश जारी करता रहता है।
नोएडा इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी के प्रो. वाइस चांसलर और देश के जाने-माने अकादमिक प्रशासक प्रो. प्रसेनजीत कुमार नई शिक्षा नीति के लक्ष्यों को लेकर शुरुआती दौर से ही बेहद सजग रहे हैं और वो देश में आयोजित अलग-अलग अंतरराष्ट्रीय व राष्ट्रीय सम्मेलनों में उन योजनाओं के क्रियान्वयन को लेकर अपनी राय और विश्लेषण प्रमुखता से प्रस्तुत करते रहे हैं। डॉ. प्रसेनजीत की माने तो नई शिक्षा नीति के तहत देश भर की शिक्षा व्यवस्था में जिस स्तर पर बदलाव की अपेक्षा की जा रही है, उसके लिए शिक्षकों और अकादमिक प्रशासकों की जिम्मेदारियों में आमूलचूल परिवर्तन की आवश्यकता है। डॉ. प्रसेनजीत के मुताबिक नई शिक्षा नीति भारतीय परंपरा व संस्कृति के आलोक में ज्ञान और विज्ञान के क्षेत्र में प्रगति की पक्षधर है और शिक्षा की पश्चिमी अवधारणाओं से अलग भारतीय पहचान को स्थापित करने वाली और हमारे जीवन-मूल्यों से मेल खाने वाली शिक्षण पद्धति को अंगीकार करने की वकालत करती है। डॉ. प्रसेनजीत कहते हैं कि नई शिक्षा नीति में जो बातें कही गई हैं, उन्हें शीघ्रता से अमल में लाए जाने की आवश्यकता है, क्योंकि उसी में राष्ट्र की सच्ची तरक्की के तत्व समाहित हैं।
आपको बता दें कि एनआईयू के प्रो. वाइस चांसलर प्रो. प्रसेनजीत कुमार इससे पहले जयपुर नेशनल यूनिवर्सिटी और श्री वेंकटेस्वरा यूनिवर्सिटी के प्रो. वाइस चांसलर रह चुके हैं और सुभारती यूनिवर्सिटी, शारदा ग्रुप ऑफ इंस्टीच्यूशंस जैसे कई संस्थानों में उच्च पदों पर अपनी सेवाएं दे चुके हैं । करीब 24 साल के अकादमिक प्रशासन, प्रशिक्षण, नीति-नियमों के निर्धारण और शिक्षा मंत्रालय, यूजीसी, नैक, एआईसीटीई व एसीटीई जैसी नियामक संस्थाओं से जुड़कर कार्य करने का व्यापक अनुभव समेटे डॉ. प्रसेनजीत उच्चतर शिक्षण संस्थाओं की गतिविधियों पर पैनी निगाह रखते हैं। शिक्षण संस्थाओं के समग्र विकास के लिए योजनाएं बनाना और उन्हें जमीन पर उतारने में डॉ. प्रसेनजीत को महारथ हासिल रहा है। यही वजह है कि भारत सरकार और राज्य सरकारों के विभिन्न अकादमिक समारोह में ना सिर्फ वो बेहद सक्रिय नजर आते हैं, बल्कि आपसी संवाद के जरिए नीतियों के क्रियान्वयन में आ रही मुश्किलों को लेकर अपने सुझाव खुलकर विभिन्न शिक्षाविदों के साथ बांटते हैं। डॉ. प्रसेनजित इस समूची प्रक्रिया में आपसी संवाद को बहुत महत्वपूर्ण मानते हैं और उनका कहना है कि हर समस्या का समाधान परस्पर संवाद में छिपा होता है। सच पूछिए तो भारत जैसे देश में जहां केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय अस्मिता के साथ शिक्षण-प्रशिक्षण के उद्देश्य निर्धारित किए हैं, वहां प्रो. प्रसेनजीत कुमार जैसे अकादमिक प्रशासकों की प्रासंगिकता बढ़ जाती है, जो भारतीय सभ्यता-संस्कृति और राष्ट्रवाद के मूल्यों पर आधारित शिक्षण व्यवस्था की संकल्पना को सही स्वरूप में साकार कर सके।