नाना साहब पेशवा के सैनिक दस्ते में गंगू मेहतर का नाम भी बेहतरीन लड़ाकों में से एक माना जाता था। उन्हें शुरुआत में नगाड़ा बजाने के लिए शामिल किया गया था, लेकिन उनके बहादुरी और पहलवानी को देखते हुए सूबेदार का पद मिल गया। वो सैनिकों को पहलवानी के गुर भी सिखाते थे, जिन्होंने आज़ादी की लड़ाई लड़ी और 200 के लगभग अंग्रेजों को मौत के घाट उतार दिया था तथा उन्हें 18-9-1857 को कानपुर में चौराहे पर फाँसी दी गई थी।
इन वीर क्रांतिकारी योद्धा को शत शत नमन। बताते हैं इनका नाम इतिहास में गुमनाम है और नाही कोई उनकी याद में कोई प्रतिमा।