धरा पर पूरा लेटकर माथा टेकते हैं, इसे साष्टांग दंडवत प्रणाम कहा जाता है।
यह एक आसन है जिसमें शरीर का हर भाग जमीन के साथ स्पर्श करता है, यह आसन इस बात का प्रतीक है व्यक्ति अपना अहंकार छोड़ चुका है। इस तरह का आसन सामान्य तौर पर पुरुषों द्वारा ही किया जाता है। शास्त्रों के अनुसार स्त्रियों को यह आसन करने की मनाही है…हिन्दू शास्त्रों के अनुसार स्त्री का गर्भ और उसके वक्ष कभी जमीन से स्पर्श नहीं होने चाहिए। ऐसा इसलिए क्योंकि उसका गर्भ एक जीवन को धारण रखता है और वक्ष उस जीवन को पोषण देते हैं। इसलिए यह आसन स्त्रियों को नहीं करना चाहिए।
साष्टांग प्रणाम
पद्भ्यां कराभ्यां जानुभ्यामुरसा शिरस्तथा।
मनसा वचसा दृष्टया प्रणामोऽष्टाङ्ग मुच्यते॥
हाथ, पैर, घुटने, छाती, मस्तक, मन, वचन, और दृष्टि इन आठ अंगों से किया हुआ प्रणाम अष्टांग नमस्कार कहा जाता है। साष्टांग आसन में शरीर के आठ अंग ज़मीन का स्पर्श करते हैं अत: इसे ‘साष्टांग प्रणाम’ कहते हैं। इस आसन में ज़मीन का स्पर्श करने वाले अंग ठोढ़ी, छाती, दोनो हाथ, दोनों घुटने और पैर हैं। आसन के क्रम में इस बात का ख्याल रखना चाहिए कि पेट ज़मीन का स्पर्श नहीं करे। विशेष नमस्कार मन, वचन और शरीर से हो सकता है। शारीरिक नमस्कार के छः भेद हैं-
केवल सिर झुकाना।
केवल हाथ जोड़ना।
सिर झुकाना और हाथ जोड़ना।
हाथ जोड़ना और दोनों घुटने झुकाना।
हाथ जोड़ना, दोनों घुटने झुकाना और सिर झुकाना।
दंडवत प्रणाम जिसमें आठ अंग (दो हाथ, दो घुटने, दो पैर, माथा और वक्ष) पृथ्वी से लगते हैं। और जिसे ‘साष्टांग प्रणाम’ भी कहा जाता है। प्रणाम करना भक्ति का २५वां अंग है। इस प्रणाम में सर्वतो भावेन आत्मसमर्पण की भावना है। इसमें भक्त अपने को नितांत असहाय जानकार अपने शरीर इन्द्रिय मन को भगवान् के अर्पण कर देता है। जब शरीर को इसी अवस्था में मुंह के बल भूमि पर लिटा दिया जाए तो इसे ‘साष्टांग प्रणाम’ कहते हैं। शरीर की इस मुद्रा में शरीर के छ: अंगों का भूमि से सीधा स्पर्श होता है अर्थात् शरीर मे स्थित छ: महामर्मो का स्पर्श भूमि से हो जाता है जिन्हें वास्तुशास्त्र में “षण्महांति” या “छ: महामर्म” स्थान मानाजाता है प्रणाम की मुद्रा में व्यक्ति सभी इंद्रियों (पाँच ज्ञानेंद्रियाँ और पाँचों कर्म इंद्रिया को श्रद्धा से समर्पण करता है।
* सौरभ वार्ष्णेय के फेसबुक पेज से साभार